राष्ट्रपति के बजाए चैतन्य देवी नज़र आई द्रौपदी मुर्मू
डॉ श्रीगोपालनारसन एडवोकेट
राष्ट्रपति बनने के बाद दूसरी बार मधुबन यानि ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय आबू रोड़ पधारी द्रौपदी मुर्मू के लिए यह यात्रा बेहद रूहानी कही जा सकती है।वे यहां एक ऐसे दिव्य व भव्य मानसरोवर भवन में प्रवास कर रही है,जिसके छठे माले पर बगीचा है।प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज मानसरोवर को महामहिम के लिए सजाया गया है।द्रौपदी मुर्मू ने सबसे पहले ब्रह्माकुमारीज संस्था के महासचिव राजयोगी निर्वेर भाई को याद किया ,जो हाल ही में अपना शरीर छोड़कर परमात्मा की गोद ले चुके है,फिर वे शांति वन में आयोजित वैश्विक सम्मेलन का मुख्य आकर्षण बनी। राजयोग के नियमित अभ्यास के लिए सुबह साढ़े तीन बजे उठने वाली द्रौपदी मुर्मू सर्वोच्च पद पर विराजित होते हुए भी अंहकार मुक्त है।उनकी स्प्ष्ट सोच है कि परमात्मा शिव की याद जब हमारी भृकुटि में विराजित आत्मा में जाकर बसने लगे तो तभी हमारा परमात्मा से वास्तविक सम्बंध जुड़ जाएगा और हम राजयोगी हो जाएंगे। तभी हम परमात्मा की याद में बैठकर परमात्मा से रूहरिहान कर सकते है।परमात्मा से अपनी आत्मा का रूहरिहान करने के लिए ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 3 अक्टूबर को ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय आबू रोड पहुंची। जहां उनका अभूतपूर्व स्वागत ब्रह्माकुमारीज चीफ रतनमोहिनी दादी के नेतृत्व में किया गया। आबू में ब्रह्माबाबा के कक्ष में द्रौपदी गई तो उनकी लौ परमात्मा से लग गई और वे बाबा के चित्र के सामने ध्यान मग्न होकर रूहानियत की सैर करने लगी।वस्तुतः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ब्रह्माकुमारीज से काफी पहले से जुड़ी है और नियमित रूप से राजयोग का अभ्यास करती है। द्रौपदी मुर्मू दो दिन के लिए इस राजयोग तपस्या की भागीदार बनी है।इस तपस्या से परमात्मा द्वारा अविनाशी भाग्य प्राप्त होता है। अविनाशी भाग्य को हमेशा अविनाशी रखना है। जिसके लिए सिर्फ सहज अटेंशन देने की बात है। टेंशन वाला अटेंशन नहीं हो सकता, सहज अटेंशन हो ,तभी हम विदेही रूप में परमात्मा से अपनी लौ लगा सकते है।राजयोग के अभ्यास से ही हमे परमात्मा की सत्य पहचान मिल पाई है।वास्तव में परमात्मा वह बीज है जिसमें सृष्टि का सारा आदि मध्य अंत का ज्ञान समाया हुआ है। परमात्मा कहते भी हैं कि मुझसे जो भी खजाने तुम्हें प्राप्त हुए हैं, उन खजानों को जमा करो, बढ़ाओ, व्यर्थ से बचो। श्वास का खजाना, संकल्प का खजाना, गुणों का खजाना, समय का खजाना, शक्तियों का खजाना, ज्ञान का खजाना। सभी खजाने जितना स्व के प्रति और औरों के प्रति शुभ वृत्ति से कार्य में लगाएंगे, उतना सद्कर्मो का खाता जमा होता जाएगा और बढ़ता जाएगा।इसके लिए अपने गुणों व शक्तियों को सदकार्य में लगाओ तो पुण्य बढ़ते जाएंगे। मनुष्य को प्राप्त गुण व शक्तियां परमात्मा का दिया वह प्रसाद है,जिससे हम अपने जीवन को 21 जन्मों के लिए सफल बना सकते है। हमे परमात्मा दाता को कभी भूलना नहीं चाहिए व मिले हुए ईश्वरीय ज्ञान खजाने को सफल करना चाहिए। साथ ही अपने ईश्वरीय संस्कारों को भी सफल करो जिससे व्यर्थ संस्कार स्वत: चले जाएंगे। सच ही है कि विद्या के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। मानव के संपूर्ण विकास में विद्या की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। इससे मनुष्य अनुशासित होता है और उसका चरित्र निर्माण होता है। विद्या के बल से वह स्वार्थों से ऊपर उठ पाता है और प्रकृति एवं मानव जाति से प्रेम करना सीखता है।भौतिक विद्या तो स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में मिल जाती है। लेकिन सत्य एवं आध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ परमपिता परमात्मा ही दे सकता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस सत्य को स्वीकार किया है। उन्होंने परमात्मा के यथार्थ रूप को पहचान कर और संपूर्ण ज्ञान को धारण करके ही अपने जीवन को दिव्य गुणों से संपन्न बनाया है।
राष्ट्रपति मुर्मू का आध्यात्म के प्रति प्रेम उनके महामहिम बनने से पहले का है।वह लगभग 11 वर्षों से ब्रह्माकुमारी संस्थान के द्वारा सिखाए जाने वाले राजयोग मेडिटेशन और आध्यात्मिक ईश्वरीय वाणी मुरली को सुनती हैं और रोजाना राजयोग का अभ्यास भी करती हैं।
ब्रह्माकुमारीज संस्थान के विश्वभर में स्थित सभी सेवा केंद्र पर एक साथ, एक ही समय पर सुबह 7 बजे से ईश्वरीय महावाक्यों पर आधारित मुरली होती है।जिसमें परमात्मा की ओर से सदशिक्षा,जीवन जीने की कला और जीवन के प्रति मार्गदर्शन मिलता है।इस राजयोग अभ्यास को करने व मुरली सुनने के लिए वे सदैव समय से सुबह साढ़े तीन बजे उठती है। सूबह उठने के बाद वह सबसे पहले वे ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिव परमात्मा का ध्यान करती हैं, जिन्हें ब्रह्माकुमारीज से जुड़े सभी भाईबहन प्यार से शिवबाबा कहते हैं। शिवलिंग के आकार की लाल लाइट के बिंदू पर वह अपना ध्यान लगाती हैं।वे शाम को भी 6.30 से 7.30 बजे तक राजयोग का अभ्यास करती हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने ब्रह्माकुमारी संस्थान में एक चर्चा के दौरान कहा था कि वह जो कुछ बोल पाती है, वह आध्यात्मिक बल के कारण ही बोल पाती है।उन्होंने ग्रेजुएट किया हुआ है ।लेकिन उन्हें हर विषय पर बोलने शक्ति परमात्मा से ही प्राप्त होती हैं।
जब जीवन मे अंधकार छाया था,तब इसी ब्रह्माकुमारीज ने राजयोग का सहारा देकर द्रौपदी मुर्मू के जीवन मे उम्मीदों की रौशनी लाने का काम किया था।आज जब उसी ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय आबू में राष्ट्रपति बनने के बाद दूसरी बार द्रौपदी मुर्मू पहुंची तो लगा जैसे वे फिर से रूहानियत में खो गई हो।अपने मधुबन को निहारते हुए वे बोली,
‘ब्रह्माकुमारीज संस्थान के विभिन्न सेवाकेन्द्रों पर जो आध्यात्म शक्ति प्राप्त होती है, उसका सबसे ज्वलंत उदाहरण स्वयं द्रौपदी मुर्मू है।जब वे अंधकारमय जीवन की ओर अग्रसर हो गई थी।तब मेडिटेशन और ध्यान योग के माध्यम से जीवन की मुख्य धारा में लौट पाई ।’ द्रौपदी मुर्मू कहती है कि ब्रह्माकुमारीज एक ऐसा संस्थान है जो बहनों द्वारा संचालित किया जाता है व वरिष्ठ भाईयों द्वारा बहनों का सहयोग किया जाता है। ब्रह्माकुमारीज संस्थान की सफलता यह सिद्ध करती है कि अवसर मिलने पर महिलाएं पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती हैं। एक आध्यात्मिक संस्था के रूप में केवल ब्रह्माकुमारीज ही नहीं ऐसी कई संस्थाएं इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं। आज ब्रह्माकुमारीज संस्थान विश्व के 140 देशों में साढ़े आठ हजार सेवाकेंद्रों का संचालन कर रहा है। ब्रह्माकुमारीज संस्थान महिलाओं द्वारा संचालित विश्व का सबसे बड़ा संस्थान है। ब्रह्माकुमारीज महिलाओं के सशक्तिकरण में सक्रिय भूमिका निभा भी रही है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने देश में महिलाओं के खिलाफ हो रही घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि आज देश में बहनों और बेटियों के साथ जो घटनाएं हो रहीं ऐसे में उन्हें शक्ति स्वरूप बनकर आगे आना होगा। ब्रह्माकुमारी बहनें-बेटियां लोगों के अंदर सतोगुण जागृत करने के लिए जागरूक करने का कार्य करें। ब्रह्माकुमारी बहने लोगों में प्रेम, शांति और आत्मीयता को भरने और उनके अंदर विकारों को समाप्त करने का कार्य कर रही हैं। द्रौपदी
मुर्मू ने कहा कि युद्ध और कलह के वातावरण में विश्व समुदाय समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है। हमें कलियुग की मानसिकता को खत्म करना होगा और सतयुग की मानसिकता का आह्नान करना होगा। इसके लिए हम सबको मन में सत्वगुण को अपनाने का प्रयास करना होगा। द्रौपदी मुर्मू ने संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा को नमन करते हुए धन्यवाद दिया व कहा कि महिलाओं को पूरे विश्व में शांति और शक्ति प्रदान करने के लिए उनके सिर पर कलश रखा है। ब्रह्मा बाबा ने जिस तरह महिलाओं को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाई, वैसे अन्य संस्थानों को भी प्रयास करना होंगे।उन्होंने कहा कि दया और करुणा की भावना भारतवासियों के जीवन मूल्यों में है। माउंट आबू से शुरू हुआ ये अभियान समस्त भारतवासियों को सशक्त बनाने और समाज को सशक्त बनाने में संबल प्रदान करे। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि इस धरती पर प्रत्येक मनुष्य मानसिक शांति प्राप्त करने के प्रयास में हैं चाहे वो किसी देश, जाति, संप्रदाय के हों। शांति भी भोजन की तरह आवश्यक है। ब्रम्हाकुमारीज शांति और आनंद का मार्ग प्रशस्त कर रही है।उनका मानना है कि आध्यात्म ही वो प्रकाश पुंज है जो पूरी मानवता को सही राह दिखा सकता है। हमारा लक्ष्य है कि भारत एक नॉलेज सुपर पावर बने। हमारी आकांशा है कि इस नॉलेज का उपयोग सस्टेनेबल डवलवमेंट के लिए हो।सौहार्द, महिलाओं और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए हो, युवाओं के विकास, विश्व में स्थाई शांति की स्थापना के लिए हो।
उन्होंने माना कि अपनी संस्कृति के आधार पर हमारा देश आध्यात्मिक और नैतिकता के निर्माण के लिए सक्रिय है।
भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, आदि शंकराचार्य और संत कबीर, महात्मा गांधीजी की शिक्षाओं ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के साथ-साथ भारत शांति के अग्रदूत की भी भूमिका निभा रहा है। माउंट आबू से शुरू हुई यह आध्यात्मिक क्रांति देश के लोगों को सशक्त बनाएगी। माउंट आबू से जाकर बहनों ने पूरे विश्व में लोगों के अंदर विराजित शक्ति को पहचानने, सशक्त बनाने, ज्ञान देने और जागरूक करने का कार्य किया व कर रही हैं।ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन कहते कि भारत के पतन का मुख्य कारण नारी का अपमान रहा है।द्वापर युग की द्रौपदी ने परमात्मा की शक्ति से नारी की लाज बचाई थी। अब नारी के द्वारा ही भारत फिर से देवभूमि बन रहा है। संस्थान के कार्यकारी सचिव डॉ. बीके मृत्युंजय का कहना है कि 25 सालों में सरकार के साथ मिलकर ब्रह्माकुमारीज संस्थान स्वर्णिम भारत को साकार करने के प्रयास में जुटा हुआ है। द्रौपदी मुर्मू नवरात्र की बेला में राष्ट्रपति के बजाए चैतन्य देवी की तरह नज़र आई ,जिन्होंने ब्रह्माकुमारीज से जुड़े भाई बहनों को अपने अनुभव से नवाज़ा।(लेखक ब्रह्माकुमारीज से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार है)
डॉ श्रीगोपालनारसन एडवोकेट
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