कब सुधरेंगे नेता और नेपाल की राजनीति ? : अंशुकुमारी झा
अंशुकुमारी झा, हिमालिनी अंक सितम्बर, 024 । हमारे देश में राजनीतिक परिवर्तन बहुत बार हुआ है । आज इसकी सत्ता तो कल उसकी, परन्तु राजनीति में सुधार बिल्कुल नहीं हो पाया है । इसे कौन सुधारेगा ? कहाँ से एक फरिश्ता आएगा और हमारे देश की राजनीति को सुदृढ़ बनाएगा । क्योंकि यहाँ जो देश का ठेका लेकर बैठे हैं उनलोगों को पहले खुद में सुधार की आवश्यकता है । लोकतन्त्र का अर्थ बहुत ही व्यापक है । लोकतन्त्र का मतलब ही होता है सुधरी हुई राजनीति परन्तु लोकतन्त्र की अनुभूति यहाँ की जनता अभी तक नहीं कर पाई है । अर्थात् फिलहाल की राजनीति जहाँनियाँ शासन से भी बदतर ही नजर आ रही है । राजनीतिक संस्कृति का विकास अभी तक नहीं हो पाया है । देश में दो बड़े दल का शासन होने के बाबजुद भी राजनीतिक अवस्था अस्त व्यस्त ही दिखने का तात्पर्य यही है कि वे लोग अभी तक राजनीति का मर्म ही नहीं समझ पाए हैं । दुख की बात तो यह है कि राजनीति में सुधार करने के बजाय संविधान संशोधन की बात हुई है । अब प्रश्न यह उठता है कि त्रुटि संविधान में है या राजनीति में ?
कुछ दिन पहले टुँडिखेल में गौरा पर्व मनाया गया था । यह पर्व नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रों की महत्वपूर्ण संस्कृति है । उसी अवसर पर हरेक वर्ष की तरह इसबार भी काठमांडू के टूँडीखेल मैदान में बड़े धूम धाम से उक्त उत्सव को मनाया गया जिसमें दोनों बड़े दलों के नेताओं का भी आगमन हुआ था । प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली और काँग्रेस के सभापति शेर बहादुर देउवा भी पहुँचे थे, उसी समय भीड़ से आवाज आई कि ओली जाओ, बालेन आओ । उसके बाद इसी कथन को सभी ने नारा लगाना शुरू कर दिया । प्रधानमन्त्री जी भड़क गये थे । उन्होंने कहा कि नयी पीढ़ी में शिष्टता और मर्यादा की कमी है । देउवा जी ने कहा कि यही है तुमलोगों की संस्कृति ? यही सीखकर यहाँ आए हो ? स्वभाविक है उन्हें बुरा लगा होगा परन्तु ऐसी अवस्था क्यों आई । उसमें से कुछ युवाओं को पुलिस पकड़ कर ले गई । किस–किस को पुलिस पकड़ेगी ? जनता के हृदय में आप सबका स्थान कहाँ है ? यह सोचनीय विषय है । जनता को भला बुरा कहने से कुछ नहीं होगा । जनता को यातनाएँ देने से भी कुछ नहीं होगा । युवाओं पर जितने मुकदमा लगाए जायेंगे वे उतने ही निडर होते जायेंगे । युवाओं को आपलोगों की धमकी, आग में घी जैसा काम करेगा और विस्फोट होने की सम्भावनाएँ आ जायेगी । जनता की असन्तुष्टि को आप सभी को समझने की जरुरत है और इसके लिए हमें सबसे पहले राजनीति में सुधार लाने की आवश्यकता है । जब राजनीति सुधरेगी तब जनता स्वतः अनुशासित हो जायेगी । उपदेश देने से बेहतर होगा जनता के मनोभाव समझने की ।
नेपाल में एक परिपाटी है कि एक पैर कब्र में हो फिर भी वही सत्तासीन रहेगा, यह नई बात नहीं है । ऐसे नेतागण हैं कि मरते दम तक राजनीति करते रहेंगे चाहे वह उसके काबिल हो या न हो, इसका प्रभाव हमारे देश पर डाइरेक्ट पड़ रहा है और देश विकास से वंचित हो रहा है । अभी नेपाल के हरेक पार्टी में पुस्तान्तरण का तीव्र दबाब चल रहा है । जिससे पार्टियों में विवाद बढ़ रहा है । सिर्फ बड़ी पार्टियाँ ही नहीं छोटे दल भी इससे प्रभावित है । यहाँ तक की जनता भी चाहती है देश को एक नया नेतृत्व मिले । दशकों से वही पुराने चेहरे को देख कर जनता उब सी गई है । चाहे कांग्रेस हो, एमाले हो, या माओवादी, सत्ता में तो आयेंगे वही घृणित व्यक्ति न ? जनता कब से ढूँढ रही है, कुछ बदलाव, कुछ नयापन पर सबकुछ यथावत ही है । जनता को सिद्धान्त, आदर्श और संस्कृति सिखाने का दायित्व वरिष्ठ नेतालोग गँवा चुके हैं । उन लोगों के कारण ही हर पार्टी के युवा नेता की अवस्था संवेदनशील है तभी तो राजनीति से युवा लोग हिचक रहे हैं । वे धर्मसंकट में हैं । उन्हें लग रहा है कि हम अपने तथाकथित वरिष्ठ नेताओं को पृष्ठपोषण दें या खुलकर विरोध करें । अब इस गम्भीर विषय को देखते हुए आप अपने देश का हाल समझ सकते हैं । हमारे देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है वह भी छुपी नहीं है ।
राजनीति और नेता दो ऐसे पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हमारे समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । राजनीति एक ऐसी क्रिया है जिसमें सत्ता, शक्ति और नीतियों का प्रबन्धन किया जाता है, जबकि नेता उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो लोगों को नेतृत्व प्रदान करते हैं । इन दोनों का समन्वय बहुत ही महत्वपूर्ण है और यह समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है । राजनीति एक समाजिक विज्ञान है जो समाज में सत्ता का वितरण, नीतियों का निर्धारण और सरकार की चलने की प्रक्रिया का अध्ययन करती है । राजनीति द्वारा समाज में न्याय, व्यवस्था और विकास का संचालन किया जाता है । नेता इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे लोगों की आवश्यकताओं और मांगों को समझते हैं और उनके हित में नीतियों का निर्धारण करते हैं । एक अच्छा नेता विश्वास, ईमानदारी और समर्पण के साथ काम करता है ताकि समाज का हित सुनिश्चित किया जा सके परन्तु ऐसा लग रहा है कि यहाँ के नेता को समाज की चिन्ता नहीं है बस उसे अपना उल्लु सीधा करना है चाहे किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो ।
लोकतन्त्र में जनता अपने हक अधिकार और देश की सुरक्षा के लिए बोल सकता है । जो नेता जनता के हित के विपरित कार्य करे उसे खुलेआम काला झंडा दिखा सकता है । उसके खिलाफ नारा भी लगा सकता है । आप उसे कब तक रोक पायेंगे ? खुली राजनीति में अनपेक्षित व्यवहार आयेगा ही उसको बाँधना गलत है बशर्ते अन्तर्निहित सन्देश को समझना होगा । टुँडी खेल मैदान में जो घटना हुई वह नई नहीं है । कई प्रधानमन्त्री जनता के हाथों थप्पड़ और फाइटिंग भी खाए हैं । कई नेता को विभिन्न कार्यक्रमों से खदेड़ा गया है तो कितने को कार्यक्रमों में आने ही नहीं दिया गया है । यह सब क्या है ? यह जनता के द्वारा नेता को सुधरने का मौका दिया जाता है परन्तु दुख की बात यह है कि वे तो उक्त करतुत पर विचार करना भी उचित नहीं समझते । उल्टे उन व्यक्ति को कारवाई में ले जाते हैं ।
नेकपा माओवादी केन्द्र के अध्यक्ष पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ विपक्षी दल के नेता हैं जो संसद में बंगलादेश और श्रीलंका का उदाहरण देते रहते हैं और सरकार की आलोचना करते रहते हैं । उनका कहना जायज है पर जब वह तीन–तीन बार कांग्रेस और एमाले के साथ सहकार्य में प्रधानमन्त्री पद पर आसीन रहे तब उन्होंने क्या किया ? प्रचण्ड को इस प्रकार का प्रश्न करना कितना उचित है ? विद्यमान शासकीय दुर्दशा, भ्रष्टाचार और राजनीतिक विचलन इत्यादि विषय में वह कितना पवित्र हैं ? यह प्रश्न निःसन्देह जनमानस के अन्दर उठ रहा है । सिर्फ प्रचण्ड ही नहीं, सत्तासीन देउवा और ओली से भी उक्त विकृति के सम्बन्ध प्रश्न उठना स्वाभाविक है । प्रश्न उठना भी राजनीति सुधारने का एक रास्ता है । नेता में सुधरने की सम्भावना कहीं दिख नहीं रही है इसलिए राजनीति को सुधारने की तरफ अग्रसर होना आवश्यक है । राजनीति में सुधार लाने के लिए कुछ नेताओं को हटाना अत्यन्त जरुरी है । इसी से ही सबका उद्देश्य पूर्ण होगा । चाहे वे ससम्मान विदा लें या धक्के मारकर निकाला जाय । यह देश के हित के लिए आवश्यक है अन्यथा देश उसी रुढि़वादी रवैया पर धूमिल होता रहेगा ।