भगवती के नौ स्वरूपों का महत्व:- आचार्य विनोद झा
“वैदिक”!!श्री विष्णु लक्ष्मी, शिव महाकाली, ब्रह्मा सरस्वती !!!
!!तीनों शक्तियों और मूर्तियों का परस्पर संबंध|||
तीनो मूर्तियों और शक्तियों के इस प्रकार से कर्तव्य क्षेत्र सिद्ध हुए हैं |महाकाली शक्ति सहित रुद्र संहार करता , महालक्ष्मी शक्ति सहित विष्णु पालन करता, और महासरस्वती शक्ति सहित ब्रह्मा सृष्टि करता |
!!! महाकाली और रुद्र का काम!!
तीनो शक्तियों के रंगों और कार्यों का चमत्कारी सम्बंध है कि रुद्र को जो संहार रूपी काम करना है, उसे कराने वाली महाकाली रूपी रुद्र शक्ति अपने भयंकर कार्य के अनुरूप काले रंग की होती है, परन्तु यह संहार का काम संहार के लिए नही, अपितु विश्व के रक्षण और कल्याण के लिए होता है |इसलिए वह बूरे हिस्से का संहार करके, अपने पति का काम पूरा करके, बुराई से बचाई हुई अपनी असली वस्तु को अपने भाई अर्थात विष्णु के हाथ में सौंपकर कहती है कि भाई जी! मैने अपने पति महादेव रुद्र की शक्ति की हैसियत से बुराई का संहार कर दिया|अतएव हम दंपति का काम पूरा हो गया| अब आप इस वस्तु को लेकर अपना जो पालन करने का काम है उसे करो ||
||महालक्ष्मी और विष्णु का काम||
विष्णु को जो पालन पोषण रूपी काम करना है, उसे कराने वाली महालक्ष्मी रूपी विष्णु शक्ति अपने पालनात्मक कार्य के अनुरूप स्वर्ण वर्ण की होती है|
परन्तु वह पालन का काम केवल पालन करके छोड़ देने के लिए नही, अपितु पोषण और वर्धन करने के उद्देश्य से किया जाता है| इसलिए वह पालन का काम करके, अपने पति के कार्य को पूर्ण करके, अपनी पाली हुईं उस वस्तु को अपने भाई अर्थात ब्रह्मा के हाथ में सौंप कर कहती है कि भ्राता जी! मैंने अपने पति श्री महा विष्णु की शक्ति के हैसियत से इस वस्तु को पाला है|इस से अब हम दंपति का काम पूर्ण हो गया |अब आप इस से लेकर अपना कार्य, जो नई वस्तुओं को उत्पन्न करना, अर्थात् पालन पोषण वर्धन करना, उसे करो |
|||महासरस्वती जी और ब्रह्माजी का काम|||
श्री ब्रह्मा जी को नई वस्तुओं का आविष्कार या सृष्टि रूपी काम करना है, उसे कराने वाली महासरस्वती रूपी ब्रह्म शक्ति अपने सृष्टि रचनात्म कार्य के अनुरूप स्वेत रंग की होती है; परन्तु वह पोषण एवम् वर्धन का काम आगे बढ़ाते जाने के ही अभिप्राय से नहीं है, अपितु पोषण और वर्धन करने के समय जो बुरे या अनिष्ट पदार्थ भी उसके साथ सम्मिलित हो जाया करते हैं, उनको दूर हटाकर ठीक कर लेने के उद्देश्य से ही होता है|इसलिए वह वर्धन काम हो जाने के बाद अपनी बढ़ाई हुई, वस्तु को अपने भाई रुद्र के हाथ में सौंप कर कहती हैं कि भ्राता जी! मैंने अपने पति श्री ब्रह्मा जी की शक्ति के हैसियत से इस वस्तु का पोषण और वर्धन किया है, इस से अब हम दंपति का काम पूर्ण हो गया, अब उसके पोषण और वर्धन समय में इसमें जो बुराइयों और त्रुटियां आ गई हों उनका संहार करने का काम हमारा नहीं, आपका है|इसलिए इन्हे हाथ में लेकर दण्ड देकर सीधा करो ||
भगवान के विना भगवती
भगवान के विना भगवती की पूजा या उपासना करने का जो फल या परिणाम होगा, उसके संबंध में श्री लक्ष्मी नारायण ह्रदय नामक उपासना ग्रन्थ में कहा है कि ऐसी उपासना से _
` लक्ष्मी: क्रुध्यति सर्वदा`
भगवान को छोड़ कर भगवती की उपासना की गई है वही देवी जगन्माता रूष्ट
हो जाती है||
भगवती रहित भगवान
इस दृष्टान्त से स्पष्ट हो गया कि भगवान को छोड़ कर केवल भगवती देवी की उपासना नहीं करनी चाहिए |अगला प्रश्न यह है कि क्या भगवती को छोड़कर केवल भगवान की उपासना की जा सकती है? नहीं
श्री शकराचार्य जी ने _
शिव: शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुम् |
शक्ति के विना ईश्वर से कुछ नहीं हो सकता|
दक्षयज्ञ उदारण
शिव जी के तिरस्कार से भगवती को क्रोध हुआ, दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस हो गया||