भाई बहन के प्रेम का प्रतीक भरदुतिया
काठमांडू, कार्तिक १८ – कंचना झा
“गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ
जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य”
आज के दिन बहने अपने भाई की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं । तरीका भले ही अलग अलग होता है लेकिन मनाते सभी हैं इस पर्व को । प्रायः दो दिन के बाद मनाया जाने वाला भाई बहन के प्रेम का प्रतीक भरदुतिया इसबार तिथि के हेरफेर के कारण दीपावली के तीन दिन के बाद मनाया जा रहा है । कात्तिक महीना शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को यह पर्व मनाई जाती है । आज बहन अपने भाई के आने की प्रतीक्षा करती हैं ।
रिश्ते तो सभी अच्छे । लेकिन भाई –बहन का रिश्ते की तो बात ही अलग है । ये एक ऐसा रिश्ता है जहाँ लड़ाई झगड़े के बाबजूद बहुत ही स्नेह आ दुलार है । ये है मिथिला में मनाने वाला पर्व ‘भरदुतिया’ । इस पर्व को भाई दूज के नाम से भी लोग मनाते हैं ।
इस भाई बहन के त्योहार में बहन अपने भाई के दीर्घायु जीवन की कामना यमराज से करती हैं । कहा गया है कि यमराज की बहन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को उन्हें निमंत्रण देकर अपने घर बुलाया था जिससे यमराज बहुत प्रसन्न हुए और तभी से ये प्रथा चलती आ रही है । मिथिलांचल में ये पर्व आज भी उल्लास के साथ मनाया जाता है
आज के दिन सभी बहने अपने अपने भाई की प्रतीक्षा करती हैं । मिथिला में चलन है कि आज के दिन भाई ही बहन के घर आते हैं । मिथिला पर्व त्योहार की भूमि । यहाँ हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया ही जाता है । हरेक संबंध का अपना–अपना महत्व है और सभी संबंधों के लिए अलग–अलग त्योहार भी । त्योहारों में भरदुतिया का अपना अलग ही महत्व है । इसे भातृद्धितीया(भरदुतिया) भी कहा जाता है । भाई बहन का त्योहार । दीपावली के बाद एक खास त्योहार है ये । मिथिला में आज भी भाई बहन के इस त्योहार का बहुत महत्व है और इसकी तैयारी भी बहुत ज्यादा की जाती है । सुबह सबेरे उठकर बहन या फिर घर की बड़ी सदस्य अरिपन देती हैं मिट्टी के बरतन जिसे मैंथिली में मटकुरी कहा जाता है उसमें मे पाँच पान का पत्ता, पाँच सुपारी ,(कोहरा )कुम्हर के फूल ,चाँदी का सिक्का ,ओकुरी आ मखान रखी जाती है । साथ ही जग (लोटा )में पानी (जल) रखा जाता है । चावल का आटा (पीठार) और सिंदुर रखी जाती है । अरिपन दिए हुए पीढि़ पर भाई को बिठाया जाता है । बहन पीठार और सिंदुर से भाई को टीका लगाती है । हाथ में पीठार लगाकर बहन अपन भाई के हाथ में मिट्टी के बरतन में जो कुछ भी रखा रहता है वो सबकुछ रख देती है और हाथ पर (जल) पानी देते हुए मंत्र पढ़ती हैं –
“गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ
जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य”
छोटा भाई अपनी बहन के पैर को छुकर बड़ी बहन से आशिर्वाद लेता है । अगर बहन छोटी है तो वो बड़े भाई का पैर छुकर आशिर्वाद लेती हैं । अपने हैसियत अनुसार उपहार भी दिए जाते हैं ।
मिथिला की एक विशेष विधि है ‘नोंत लेना’
मिथिला की लोक संस्कृति में नोंत लेना एक विशेष विधि है, जो अन्य लोक संस्कृति में नहीं है । इस विषय में पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि –इस दिन भाई को बिना बुलाए आना चाहिए ।
वैसे अब समय के साथ इसमें भी बहुत बदलाव आ गया है । अब लोग बहुत ज्यादा व्यस्त हो गए हैं । अब नहीं बजती है साईकिल की घंटी वरन अब भाई आते हैं मोटर से बाइक से । अगर नहीं आ पाते हैं तो फेसबुक तो है ही न इंटरनेट का जमाना है भाई बहन के लिए उसी में हैपि भातृद्धितिया या भरदुतिया लिख कर शुभकामना या आशिर्वाद दे दिया जाता है । ये भी बहुत महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि भाई बहन एक दूसरे से बहुत दूर, कभी –कभी विदेश में भी होते हैं तो ऐसे में आना संभव नहीं हो पाता तो उनके लिए तो ये मैसेज भी बहुत बड़ी बात हुई न । बात बस इतनी है कि आप दुनिया के किसी भी कोने में रहें अपन त्योहार,अपने लोग, समाज , अपनी संस्कृति से जरुर जुडेÞ रहे । ताकि हमारी परम्परा जीवित रहें तभी हम और आप भी जीवित रहेंगे । यदि यह सबकुछ गुम हो गया तो कहीं न कहीं हम और भी खो जाएंगे । बहुत शुभकामना सभी भाई बहन को भरदुतिया का ।