जागरण सभा- जिसकी सरकार है वही सड़क प
कंचना झा, काठमांडू । बड़े आश्चर्य की बात है जिसकी सरकार है वही सड़क पर उतरा हुआ है । न जाने इस देश के नागरिकों का क्या होगा ? जहाँ अभिभावक ही सड़क पर जाकर जागरण सभा कर रहा है तो घर परिवार के लोग अपना दुख किससे कहेंगे ? जब सरकार ही अपने खिलाफ सड़क पर उतरी है यह कहते हुए कि नागरिकों में निराशा बढ़ती जा रही है । अराजकता के कारण कानून का शासन कमजोर हो रहा है, इसलिए हम ये सभा कर रहे हैं ।
नागरिकों में जो निराशा है उसके बारे में तो देश का चौथा अंग बता ही रहा है, विपक्ष दल बोल ही रहे हैं । इतना ही नहीं आपके जो विरोधी हैं वो तो आपको बता ही रहे होत हैं तो फिर सरकार को क्या जरुरत की वो सड़क पर उतरे ? वैसे हमारे प्रधानमंत्री न जाने किसे इतनी सफाई देते रहते हैं कि मैं २०८३ के असार तक पद पर बना रहूँगा । ये जताना ही क्यूँ । इसका मतलब कि वो याद करवा रहे हैं कि मैं रहूँगा । ये बात तो जनता कहेगी । या कहेंगे आपके सहयोगी दल । आज जिसने भी प्रधानमंत्री को मंच पर बोलते हुए सुना है सब यही कह रहे हैं कि ये हमारे प्रधानमंत्री इतना उछल –उछल कर एक ही बात को क्यों कह रहें हैं ?
शायद प्रधानमंत्री को डर है कि कहीं कोई भूल न जाए कि वो प्रधानमंत्री हैं और २०८३ के असार तक रहेंगे । जब दोनों बड़े दलों के साथ समन्वय हुआ है तो वो रहेंगे ही । या फिर उन्हें डर है कि मैंने तो मध्यरात में जाकर घोखा दिया है कहीं ये कांग्रेस ही तो है मुझे धोखा न दे । इसलिए वो किसी भी सभा में जाते हंै तो ये कहना नहीं भूलते कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं और अभी रहेंगे ।
लगभग दो सप्ताह से एमाले के नेता और कार्यकर्ता इस सभा को लेकर काम कर रहे थे । लग रहा था कि इस सभा के द्वारा न जाने कोन कौन सी जानकारी देने वाले थे । लेकिन हाथ आया सुन्ना क्योंकि ओली ने जो बात सभा में कहीं है वो तो जिस दिन प्रधानमंधी के पद पर बैठे उसी दिन से रट रहे हैं तोते की तरह कि मैं २०८३ असार तक प्रधानमंत्री बना रहूँगा । उन्होंने कोई नई बात नहीं कही सभा में । जिस कारण से उन्होंने सभा का आयोजन किया कि नागरिकों में निराशा है, उस निराशा को दूर करने वाली तो कोई बात कही ही नहीं । निराशा को आशा में बदलने या जगाने के बजाय स्पष्टीकरण देने में ही समय निकाल लिया । प्रधानमंत्री ओली का मुख्य जोर इस सरकार की स्थिरता पर भरोसा दिलाने को लेकर था ।
जनता में निराशा है तो उसे दूर करने के लिए सरकार क्या नीति बना रही है ? उसकी क्या योजनाएं हैं आने वो दिनों में । इसकी तो चर्चा ही नहीं हुई । लोग यही सोचकर सभा में पहुँचे थे ताकि कुछ नया सुन पाएंगे । लेकिन एक बार फिर जनता को निराशा ही हाथ लगी ।
सच तो यह है कि यहाँ सबकुछ मजाक बनकर रह गया है । ऐसा लगता है कि सभी बंदर हैं और एक मदारी सबको नचा रहा है । नागरिकों में निराशा है । अराजकता अपने चरम पर है तो इसके लिए सरकार काम करेगी या सभा कर स्पष्टीकरण देगी । मंसिर ७ गते पूरा काठमांडू अस्त व्यस्त रहा । बच्चों के स्कूल, बच्चों की शिक्षा, पर कितना असर पड़ा ? लोग जो बसों से काम पर जाते हैं उन्हें कितनी असुविधाएं हुई । न जाने कौन कौन से रुट लेकर बच्चें स्कूल पहुँचे , लोग काम पर पहुँचे । बहुत लोगों को हो सकता है कि उन्हें अस्पताल पहुँचना होगा लेकिन वो समय पर नहीं पहुँच पाए होंगे । ये दायित्व किसका है ? सरकार केवल भाषण के लिए या सभा करने के लिए है । वैसे तो सरकार से पहले भी लोगों को कोई खास उम्मीदें नहीं थी और आने वालों दिनों में भी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है ।
सच तो यह है कि इस देश के लोग केवल अब यही चाहते हैं कि उनके बच्चें कम से कम इस देश में नहीं रहें । वो अपने अपने काम को लेकर बाहर जाएं क्योंकि इस देश में कुछ नहीं होने वाला है । यहाँ केवल अदला बदली कर सरकार बनेगी । यहाँ बाकी किसी काम के लिए कोई जगह नहीं है ।
ये तो हमारे प्रधानमंत्री भी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि लोग उन्हें सुनने के लिए जाते हैं, उनकी बात को सुुनने नहीं उनके चुटकुले को सुनने के लिए जाते हैं । उनके तुक्के को सुनने के लिए जाते हैं ताकि खुलकर हँस सके । ये हैं हमारे प्रधानमंत्री । जिन्हें न तो देश की चिंता है न ही जनता की चिंता है । आज के इस जागरण सभा से एक बार फिर यह साबित हो गया कि ये लोग देश की जनता के लिए न तो कल कुछ कर रहे थे, न आज कर रहे हैं और न ही आने वाले कल में कुछ करने वाले हैं । इन्हें केवल और केवल अपनी कुर्सी की पड़ी है जिसपर ये बारी बारी बैठेंगे ।सच्चाई तो यह है कि सरकार नाटक कर रही है अपने आप को बचाने के लिए । सब नाटक है नाटक ।