सहकारी घोटाला : लामिछाने का संकटपूर्ण राजनीतिक जीवन : लिलानाथ गौतम
लिलानाथ गौतम, हिमालिनी अंक सितम्बर,024, सञ्चार क्षेत्र में एक समय रवि लामिछाने का नाम गर्व से लिया जाता था । कई सर्वसाधारण उनको ‘भगवान’ के रूप में मानते थे । इसके पीछे एक कारण है– सञ्चार माध्यम का प्रयोग कर उनकी ओर से किया गया सामाजिक कार्य । हां, रवि लामिछाने के सञ्चारकर्म से कई लोगों ने न्याय प्राप्त किया है । जो लोग समाज, पुलिस प्रशासन तथा राज्य की ओर से न्याय प्राप्त नहीं कर सकते थे, वे लामिछाने के पास पहुँच जाते थे । ऐसे कई पीडि़तों ने न्याय प्राप्त भी किया । ऐसे ही लोग उनको भगवान मानते थे ।
इसीतरह कई भ्रष्टाचारजन्य गतिविधि को भी उन्होंने अपनी रिपोर्टिङ से फर्दाफास किया है । लामिछाने की ओर से सम्पादित टेलिभिजन रिपोर्ट ऐसा होता था, जिसके चलते भ्रष्टाचारजन्य गतिविधि में संलग्न ठेकेदार, व्यापारी, नेता उनका नाम सुनते ही डर जाते थे । वैसे तो सञ्चार क्षेत्र के कई लोगों ने कहा है कि सञ्चारकर्मी के रूप में लामिछाने जो कर रहे है, वह पत्रकारिता के धर्म और मर्यादा के विपरित है । इसतरह आरोप लगानेवाले व्यक्ति राज्य की सिस्टम से जुड़े हुए लोग ज्यादा थे । लेकिन लामिछाने ने अपनी कार्यशैली को परिवर्तन नहीं किया । कारण था– सार्वसाधारण नागरिकों की ओर से प्राप्त समर्थन । माहौल ऐसा बनने लगा कि जहां रवि लामिछाने पहुँच जाते थे, वहां सार्वसाधारणों की भीड़ लग जाती थी ।
इसी परिस्थिति को कैस करते हुए रवि लामिछाने ने चुनाव से पूर्व राष्ट्रीय स्वतन्त्र (रास्वपा) पार्टी नाम से राजनीतिक पार्टी गठन किया । पार्टी गठन को ६ महीने भी नहीं हुआ था, रास्वपा चुनाव में देश की चौथी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर आई । रवि लामिछाने गृहमन्त्री बन गए । उसके बाद रवि लामिछाने की जो पपुलारिटी थी, उसका ग्राफ गिरने लगा है । लगभग दो साल की अवधि में आज आकर लामिछाने और रास्वपा पार्टी के राजनीतिक भविष्य को लेकर प्रश्न उठने लगा है । अर्थात् जिसतरह लामिछाने रातोरात राजनीति में उभर आए थे, उसी तरह उनका पतन का ग्राफ भी बढ़ने लगा है । कांग्रेस, एमाले जैसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के नेतागण आज ऐसी ही विश्लेषण करने लगे हैं ।
कारण क्या है ?
जिस वक्त लामिछाने पत्रकार थे, उस वक्त वह सुशासन की बात करते थे । सुशासन संबंधी एजेण्डा को लेकर टेलिभिजन रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे, उसी के बल पर उन्होंने राजनीतिक छलांङ मारा था । लेकिन आज उनके ऊपर ही सुशासन को लेकर प्रश्न उठने लगा है । लामिछाने भ्रष्टाचारजन्य गतिविधि में संलग्न हैं, कुछ हद तक इसकी पुष्टि भी हो चुकी है । प्रत्यक्ष भ्रष्टाचार में संलग्न होने का प्रमाण तो नहीं है, लेकिन भ्रष्टाचारजन्य कार्य करनेवालों का उन्होंने साथ दिया है, इसकी पुष्टि हो चुकी है । विशेषतः सहकारी घोटाला को लेकर लामिछाने को दोषी पाया गया है ।
राजनीतिक प्रतिशोध के लिए लामिछाने की यह कमजोरी काफी है । इसीलिए आज कांग्रेस–एमाले के कुछ नेता लामिछाने के विरुद्ध हाथ धोकर लगे हुए हैं । नागरिकता और राहदानी प्रकरण में कानूनी त्रुटि होते हुए भी गृहमन्त्री बनना, सहकारी घोटाला में सहयोगी भूमिका निर्वाह करना, यह दो प्रकरण ऐसा है जो लामिछाने के सुशासन एजेण्डा को मजाक बना देता है । हां, सहकारी संस्था की बचत रकम दुरुपयोग छानबिन के लिए गठन की गई संसदीय विशेष छानबिन समिति ने रास्वापा सभापति तथा पूर्व गृहमन्त्री लामिछाने को बचत अपचलनकर्ता के रूप में दोषी माना गया है ।
संसदीय विशेष समिति ने लामिछाने तथा अन्य कुछ व्यक्तियों के ऊपर प्रचलित कानून बमोजिम कारबाही के लिए सरकार समक्ष सिफारिश किया है । इसका मतलब अब रास्वपा सभापति लामिछाने भ्रष्टाचारजन्य गतिविधि में संलग्न होने के आरोप में जेल भी जा सकते हैं । यहां आश्चर्य की बात तो यह है कि संसदीय विशेष समिति की ओर की गई की कारबाही सिफारिश को अनदेखा करते हुए लामिछाने तथा उनके कुछ समर्थक कहते हैं कि लामिछाने निर्दोष हैं, उनको समिति की ओर से ‘क्लिनचिट’ प्राप्त हुआ हैं ।
लेकिन सच्चाई ऐसी नहीं है । समिति की ओर से प्रतिनिधिसभा सभामुख देवराज घिमिरे के समक्ष सहकारी घोटाला संबंधी जो प्रतिवेदन पेश किया गया है, उससे लामिछाने के ऊपर गम्भीर कानूनी, राजनीतिक तथा नैतिक प्रश्न खड़ा हुआ है । लेकिन लामिछाने विरोधाभाषपूर्ण अभिव्यक्ति देते हैं कि उनको क्लिनचिट प्राप्त है । सुशासन के लिए चिल्ला–चिल्ला कर टेलिभिजन कार्यक्रम चलानेवाले और राजनीतिक भाषण देनेवाले लामिछाने राजनीतिक नैतिकता की बात भी करते थे । आज खुद वह सुशासन और राजनीतिक नैतिकता के कठघरे में खड़े हैं । ऐसी परिस्थिति में उनको पार्टी सभापति पद त्याग कर एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए था और रास्वपा पार्टी को बचाना चाहिए था । लेकिन झूठा अभिव्यक्ति देकर पार्टी को ही दांव पर लगाने की ओर अग्रसर हैं ।
लामिछाने के ऊपर आशा और भरोसा रखनेवाले सर्वसाधारण जनता के मुँह पर उन्होंने पानी फेर दिया है । संसदीय विशेष समिति की रिपोर्ट यही कहती है । लामिछाने आबद्ध गोरखा मीडिया नेटवर्क में १४ महिनों की अवधि में विभिन्न सहकारी संस्थाओं से ६५ करोड़ रुपये आई है, इस वक्त लामिछाने गोरखा मीडिया के प्रबन्ध निर्देशक थे । छानबिन समिति के अनुसार सूर्यदर्शन, सुप्रिम, स्वर्णलक्ष्मी, सहारा चितवन र सानोपाइला सहकारी से कानुन विपरीत गोर्खा मिडिया में रकम आया है और उक्त रकम का दुरुपयोग सञ्चार संस्था ने ही किया है । समिति का कहना है कि तत्कालीन प्रबन्ध निर्देशक की हैसियत से रवि रकम अपचलन में जिम्मेवार हैं ।
समिति सभापति तथा एमाले नेता सूर्य थापा ने सहकारी ऐन की दफा १२२ उल्लेख करते हुए कहा है कि लामिछाने के ऊपर कारबाही के लिए सिफारिश किया गया है । लेकिन लामिछाने, रास्वपा उपसभापति स्वर्णिम वाग्ले तथा अन्य पदाधिकारी तथ्य को गलत व्याख्या करते हुए रवि को निर्दोष करार करने में लगे हुए हैं । वैसे तो सहकारी घोटाला प्रकरण में सिर्फ लामिछाने दोषी हैं, ऐसा नहीं है । राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी की सांसद् गीता बस्नेत सहकारी घोटाला संबंधी प्रकरण में फंसी हुई है । जब उनको पुलिस ने गिरफ्तार करने की योजना बनाई, वह लापता हो गई हैं । कांग्रेस सांसद् तथा पूर्व मन्त्री धनराज गुरुङ के ऊपर भी सहकारी घोटाला का आरोप है । अन्य कई व्यक्तियों के ऊपर सहकारी घोटाला का आरोप है, जो नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले से निकट व्यक्ति माने जाते हैं । इनमें से कई व्यक्ति तो जेल में भी है ।
सच्चाई का एक और पक्ष भी है– आज लामिछाने को ६५ करोड़ हिनामिना के आरोप में दोषी माना गया है, लेकिन सहकारी घोटाला में यह रकम १% प्रतिशत भी नहीं है । बताया जाता है कि २० अर्ब से ज्यादा रकम सहकारी घोटाला में फंस गया है । उल्लेखित रकम घोटाला में कांग्रेस–एमाले निकट व्यक्तियों का ही हाथ है । ऐसी परिस्थिति में सिर्फ लामिछाने के ऊपर कारवाही करने से बांकी रकम वापस होनेवाला भी नहीं है । इसीलिए राजनीतिक वृत्त में यह भी चर्चा है कि लामिछाने के ऊपर कारबाही के लिए जो प्रतिवेदन तैयार हुआ है, वह राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है । बताया जाता है कि यदि लामिछाने एमाले और कांग्रेस जैसे पार्टियों को विरोध ना करें तो उनके ऊपर कारबाही होनेवाला भी नहीं है, प्रतिवेदन भी इसी उद्देश्य से विरोधभाषपूर्ण बनाया गया है । अर्थात् सुशासन को मजाक बनानेवाले पार्टियों में से अब कांग्रेस, एमाले जैसे पुराने पार्टी ही नहीं, रास्वपा जैसे नयी पार्टी भीं शामील हो गई है । अब लामिछाने की सुशासन एजेण्डा भी संकट में पड़ गया है । एजेण्डा ही नहीं, लामिछाने का राजनीतिक जीवन भी संकटपूर्ण बना हुआ है ।