मैडेन फार्मा : मौत की दावत

प्रमोद कुमार मिश्र,हिमालिनी अंक सेप्टेंबर 024। दवा जीवन देती है और जहर मौत । जिंदगी लीनने वाले को कसाई कहा जाता है और मैडेन फार्मास्यूटिकल लिमिटेड दिल्ली के पितमपुरा स्थित अपने मुख्यालय से मौत बांट रही है । यह आरोप विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का है ।
इस संवाददाता की ओर से डब्लूएचओ को भेजे मेल के जबाव में इसके संपर्क अधिकारी ने कहा है कि डब्लूएचओ को जानकारी है कि भारत सरकार दवाओं के दूषण से जुड़े कई मामलों की जांच कर रही है । साथ ही गाम्बिया में उत्पन्न स्थिति को लेकर एक मेडिकल प्रोडक्ट एलर्ट जारी किया गया है जहां मैडेन पैकेजिंग की सूची में शामिल है । जब कभी भी इस तरह का एलर्ट जारी किया जाता है तो यह सदस्य देशों के उपर निर्भर करता है कि वह अपने लोगों को इस जानलेवा दवाओँ से रक्षा करे । गाम्बिया की यही परिस्थिति है । साथ ही एलर्ट जारी होने पर जहां ऐसे उत्पाद बनाए जाते हैं यह उस देश की जिम्मेदारी है कि वह इसे मरीजों तक पहुंचने से रोके, इस मामले में भारत के प्राधिकार को इस पर लगाम लगाना है कि इन दवाओं को मरीज प्रयोग में न लाएं या इसे विदेश को निर्यात नहीं किया जाए । इसलिए यह प्रश्न भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संस्था से पूछा जाना चाहिए क्योंकि यह उन सभी सदस्य देशों की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी दवा उत्पादक कंपनियों की जांच करें ।

कहानी यही खत्म नहीं होती । गाम्बिया में तो मैडेन के खिलाफ अभी तक जांच की गई या नहीं इसकी सामूहिक जानकारी औषधि नियंत्रण प्राधिकारों की ओर से नहीं दी गई है लेकिन एक मामले में तो कंपनी के दो निदेशकों को न्यायालय की ओर से ढाई साल की सजा सुनाई गई थी । इस मामले में कंपनी ने अपने उत्पाद को एक दशक पूर्व वियतनाम भेजा था ।

सोनीपत स्थित जिला न्यायालय ने मैडेन के दो कार्यकारी अधिकारी नरेश कुमार गोयल (कंपनी के कर्ताधर्ता) और एमके शर्मा (तकनीकि निदेशक) को ढाई साल की सजा सुनाई थी । इन दोनों पर न्यायालय ने अमानक रैनिटीडीन टैबलेट निर्यात करने के आरोप में एक–एक लाख का आर्थिक जुर्माना भी ठोका था । हालांकि बहस के दौरान आरोपी के वकील ने कोर्ट से कहा था कि इन दोनों आरोपियों की उम्र ६० साल से ज्यादा है और वे पिछले सात साल से न्यायालय के कार्यवाही को झेल रहे हैं, इसलिए उन्हें सजा में छूट दी जाए । शायद यही कारण है कि इन्हें महज ढाई साल की ही सजा हुई ।
उल्लेखनीय है कि कंपनी के खिलाफ इस मामले में २०१४ के दौरान जांच तब शुरू हुई थी जब वियतनाम में भारत के कंसुलेट जेनरल ने औषधि महानियंत्रक को कहा था कि वियतनाम ने अमानक दवाओं के निर्यात के कारण कई भारतीय दवा निर्माता कंपनियों को काली सूची में डाल दिया है जिसमें मैडेन फार्मास्यूटिकल भी शामिल है ।

यहां, यह कहना जरूरी है कि कंपनी एक यूनिट यहीं पानीपत में ही स्थित है । मामले में कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से यह साबित कर दिया गया है कि कंपनी पर लगाए आरोप किसी भी संदेह से परे है । इस मामले में कंपनी ने वियतनाम को दिल की बीमारी के इलाज से जुड़ी अमानक दवाओं को भेजा था । हालांकि कंपनी ने इस आरोप को खारिज किया लेकिन कोर्ट ने इसके कथन को सत्य नहीं माना । जब इस मामले में इस संवाददाता की ओर से कंपनी के कर्ताधर्ता नरेश कुमार गोयल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने सोनीपत कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है और इस मामले में कुछ बचा नहीं है । इसलिए वह इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते ।

हालांकि गाम्बिया के मामले में डब्लूएचओ की ओर जारी एलर्ट को लेकर सरकार ने कंपनी के उत्पादन को पिछले अक्टूबर में स्थगित कर दिया था और अभी तक इसके उत्पादन इकाइयों पर ताला ही लगा हुआ है । डब्लूएचओ के मुताबिक कंपनी की ओर से निर्मित कफ शिरप के पीने से गाम्बिया में बच्चों की मौत हुई । जबकि पिछले ०५ अक्टूबर तक मैडेन के पितमपुरा स्थित मुख्यालय में सब कुछ सामान्य था और यह अपने २५० लाख के आयात के सम्राज्य को बेहतर तरीके से चला रहा था । कहना गैर जरूरी है कि मैडेन के उत्पाद चिली से लेकर वेनेजुएला, सेनेगल, बुर्किना फासो, वियतनाम व कंबोडिया तक निर्यात किए जाते थे । कंपनी के वेबसाइट के मुताबिक इसके उत्पाद लगभग ४१ देशों में बेचे जाते हैं । लेकिन पांच अक्टूबर को सब कुछ असामान्य हो गया और कंपनी के ३२ साल का सपना एक ही बार ही टूट गया और इसके उत्पादन पर रोक लगा दी गई क्योंकि कंपनी पर डब्लूएचओ की ओर से गाम्बिया में ६६ बच्चों को मौत की निंद सुला देने के आरोप लगे । कहा गया कि मैडेन की दवाओं के पीने से इन बच्चों की किडनी ही काम करना बंद कर दिया और इनकी मौत हो गई ।
जिन दवाओं को पीने से बच्चों की मौत हुई, उनमें प्रोमेथाईजी ओरल साल्यूशन, कोफेमेलीन बेबी कफ शीरप, मैकोफ बेबी कफ शीरप और मैग्रिप एन कोल्ड शीरप शामिल है । डब्लूएचओ के मुताबिक उक्त चारो दवाओं के प्रयोगशाला विश्लेषण से जानकारी मिली कि इसमें अत्यधिक मात्रा में डायएथिलीन ग्लाइकॉल की मिलावट थी जो विषैला होता है । इसके मुताबिक इन दवाओं को गाम्बिया के अलावा अन्य देशों में भी बेचा गया है । डब्लूएचओ ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि डायइथिलीन ग्लाईकॉल व इथिलीन ग्लाइकॉल विषैला रसायन है और इसके चलते लोगों को पेट में दर्द, उलटी, डायरिया, पैशाब का बंद होना, सरदर्द, मानसिक अचेतना, किडनी का फेल होना आदि की शिकायत आने लगती है जो जानलेवा हो जाती है । कंपनी की ओर से उत्पादित सभी दवाएं को डब्लूएचओ द्वारा असुरक्षित समझा गया । २०२० के दौरान भी हिमाचल प्रदेश में १४ बच्चों की जान एक दूसरी कंपनी की ग्लाईकॉल मिश्रित दवा के लेने के कारण चली गई थी ।

हालांकि मैडेन ने इस आरोप से अभी तक पूरी तरह इनकार किया जबकि अब इस कंपनी के निर्यात को रोक दिया गया है । कंपनी के बयान के मुताबिक इसके सभी कर्मी चकित हैं कि मीडिया में इस तरह की खबरें कैसे आ रही हैं । इसके मुताबिक इसने गाम्बिया के एजेंट से बच्चों की मौत की जानकारी ०५ अक्टूबर २०२२ औपचारिक रूप से मंगवाई जिसमें इस तरह की बात नहीं बताई गई । लेकिन डब्लूएचओ ने हमारे खिलाफ एलर्ट जारी कर दिया । यानी कंपनी भी एलर्ट की बात को स्वीकार कर रही है । डब्लूएचओ के एलर्ट के बाद केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संघ के विश्लेषक चार बार कंपनी के कार्यस्थल का दौरा कर चुके हैं । कंपनी ने इस मुतलिक कहा है कि मामला न्यायालय में होने के कारण वह इसके बारे में कुछ नहीं बोल सकती । वह रिपोर्ट का इंतजार कर रही है ।

कहना गैरजरूरी है कि दिल्ली के पितमपुरा स्थित मैडेन फार्मास्यूटिकल्स की स्थापना १९९० में की गई थी । कंपनी की हरियाणा के सोनीपत और कुंडली स्थित दो यूनिटों में ६००० लाख कैप्सूल, १८० लाख इंजेक्शन, ३ लाख ट्यूब मलहम, २२ लाख शिरप के वाइल व १२००० लाख टैबलेट बनाए जाते हैं । कंपनी जीवन रक्षक दवाई से लेकर लेकर एंटीबायोटिक्स तक बनाती है । मैडेन अपने वेबसाईट पर यह भी दावा करती है कि इसे आईएसओ –९००१÷२०००) व डब्लूएचओ से जीएमपी (गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस) का लाईसेंस प्राप्त है । जानकारी के मुताबिक कंपनी से जुड़ा यह पहला मामला नहीं है जिसमें इसके खिलाफ कार्यवाही हुई हो । इससे पूर्व केरल में इसके खिलाफ मामले आए और बिहार में भी यह २०११ से ब्लैकलिस्टेड है । २०१४ के दौरान वियतनाम ने ६६ कंपनियों को ब्लैकलिस्टेड की थी जिसमें मैडेन का नाम भी शामिल था । भारत के वियतनाम स्थित कंसुलेट जेनरल दीपक मित्तल ने भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय को लिखकर यह जानकारी दी थी । एक आरटीआई के जबाव में यह जानकारी उभरकर आई थी । लेकिन तो भी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने मैडेन को सर्टिफिकेट ऑफ फार्माच्यूटिकल प्रोडक्ट (सीओपीपी) जारी कर दिया । उल्लेखनीय है कि डब्लूएचओ के नियम के मुताबिक किसी फार्मा कंपनी के पास इस आयाम का होना जरूरी है । ‘ट्र‘थ पिल’ के लेखक दिनेश ठाकुर के मुताबिक अगर कंपनी जीएमपी के नियम का पालन करती तो दवा में ग्लाईकॉल के मिश्रण की जानकारी मिल जाती लेकिन कंपनी ने तो ऐसा किया ही नहीं जिसके चलते बच्चों की जान चली गई । हालांकि दवा में डीइथिलीन ग्लाईकॉल को लेकर भारत की स्थिति दयनीय है । २०२० के दौरान हिमाचल में १२ बच्चों की मौत के पूर्व गुरुग्राम में ३६ बच्चों की मौत इसी ग्लाईकॉल के कारण हुई थी । इससे पूर्व इस कैमिकल के कारण मुंबई में १४ बच्चों की मौत हुई थी । यहां जानना जरूरी है ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट १९४० में लागू किया गया था क्योंकि १९३८ में ग्लाईकॉल के कारण १०५ लोगों की मौत अमेरिका में हो गई थी ।

 

Source : https://www.himalini.com/187932/07/25/10/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%25a1%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25ab%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25a4-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25a4