कंचना झा – पालकी पर सवार आई माँ जगदम्बा

काठमांडू असोज १७ –

कंचना झा  –  हिन्दू धर्म में नारी को शक्ति का रुप माना गया है । शक्ति अर्थात् माँ जगदम्बा जिनकी सभी प्रतीक्षा कर रहे हैं । प्रतीक्षा अब समाप्त हो गई है और ३ अक्टूबर शारदीय नवरात्रि का आरम्भ हो गया है । घर में क्या छोटे और क्या बड़े सभी मिलकर माँ जगदम्बा की पूजा अर्चना में लगे हैं । माँ जगत जननी इस बार पालकी पर आ रही हैं । नौ दिन तक माँ भगवती के विभिन्न रुपों की पूजा की जाती है । आज पहला दिन है और पहला दिन होता है माँ शैलपुत्री का । कहते हैं माँ शैलपुत्री को सफेद वस्तु बेहद प्रिय है । इसलिए इन्हें उजला फूल , उजला वस्त्र चढ़ाया जाता है । इसी तरह दूसरा दिन ब्रह्रमचारिणी, तीसरे दिन चन्द्रघण्टा,चौथे दिन कुष्माण्डा,पाँचवें दिन स्कन्दमाता, छठवें दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्री, आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है । दुर्गापूजा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व है । वैसे पूजा पाठ को लेकर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है । जिनकी जैसी आस्था होती है वो उसी अनुरुप पूजा अर्चना करते हैं । शारदीय नवरात्र का बहुत लोग व्रत भी लेते हैं । लेकिन सभी अपनी सुविधा अनुरुप ही करते हैं । व्रत में भी बहुत तरह के जैसे कोई दिनभर निराहार रहते हैं और रात को खाना खाते हैं । कोई दिनभर व्रत करते हैं और रात को केवल फलाहार ही करते हैं । माँ भगवती की असीम कृपा है जो वो सबके पूजा को स्वीकार करती हैं ।
दुर्गापूजा के नाम से विख्यात इस त्योहार को दशैं, नवरात्रा, दशमी आ दशहरा के नाम से भी जाना जाता है । कहा गया है कि जब धरती पर आसुरी शक्ति बढ़ गई तब माता दुर्गा भवानी विभिन्न रुप में आई और उन सबका विनाश किया । माता के आगमन को बहुत से किस्से कहानियों से जोड़ा गया है । दुर्गा पूजा की महिमा रामायण से भी जुड़ी है । कहते हैं भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले में माँ शक्ति की पूजा अर्चना की थी जिसके फलस्वरुप वें विजयी हुए । इसलिए बहुत जगह इसे विजया दशमी भी कहा जाता है ।
लेकिन समय के साथ पूजापाठ में भी अब अन्तर आ गया है । बच्चों में पहले बहुत उत्साह रहा करता था इस त्योहार को लेकर । तब लोगों की आर्थिक अवस्था इतनी बेहतर नहीं थी । घर के बड़े इसी त्योहार में सभी बच्चों के लिए कपड़े लाते थे । बच्चें बड़े बेसब्री से दुर्गापूजा की प्रतीक्षा करते थे । लेकिन अब ऐसा नहीं होता अब जब जिसकी मर्जी होती है कपड़े खरीद लिए जाते हेैं । पूजा पाठ का जो उमंग रहता था अब नहीं रह गया है ।
लेकिन पूजा त्योहार से अपने आने वाले पीढि़यों को जोड़ना बहुत आवश्यक है । अपनी भाषा ,रहन सहन, संस्कृति, अपने पर्व त्योहार से लगाव होना अति आवश्यक है । अभी के माहौल की अगर बात करें तो सभी आधुनिकता के पीछे भाग कर सबकुछ भूल रहे हैं । कुछ भूल रहे हैं तो नई पीढ़ी नए तरीके से इसे मना भी रही है । खासकर अगर भजन की बात करें तो गजब का परिवत्र्तन हुआ है । युवाओं ने इन भजनों को गाकर अपने आप को नए रुप से प्रस्तुत किया है तो कभी कभी लगता है कि हमारे बच्चें फिर से वापस अपनी संस्कृति अपने पर्व त्योहार के प्रति रुचि रख रहे हैं ।

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